Sunday 21 August 2016

ईश्वर प्रार्थना का महत्व ?

"प्रार्थना" इस शब्द के स्मरण मात्र से ही हम अपने अधीर ह्रदय को शांत अवस्था में ले आते है और हम यह कह सकते है की प्रार्थना का सीधा सम्बन्ध हमारे ह्रदय से है, प्रार्थना कभी किसी के दबाव में नहीं करते है ये तो "बस हो जाती है"। प्रार्थना भगवान् से भेट करने का एक आसान तरीका है, प्रार्थना हमें आत्म-मूल्यांकन और परम तत्त्व तक पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त करती है।

महात्मा गाँधी जी ने भी कहा है :-
"प्रार्थना नम्रता कि पुकार है; आत्मशुदी का, आत्म्निरिझणका आहान है |"

स्कूलों में भी ईश प्रार्थना के बाद ही पठन-पाठन का काम होता है । एक उदाहण:-
हे प्रभु आनंद-दाता ज्ञान हमको दीजिये।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए।।
लीजिये हमको शरण में, हम सदाचारी बनें।
ब्रह्मचारी धर्म-रक्षक वीर व्रत धारी बनें।।
हे प्रभु आनंद-दाता ज्ञान हमको दीजिये... ।।

१० हजार से भी अधिक वर्षो से इस पृथ्वी गृह पर प्रार्थनाएं की जाती रही हैं। भारत प्रार्थनाओं की भूमि रही हैं। प्रार्थनाओ का असर बहुत ही सकारात्मक रूप से पड़ता हैं। भारत के अलावा कई अन्य देश भी इसको मान रहे हैं।

कुछ तो बहुत ही रोचक पहलु भी सामने आये हैं,  ‎दिल्ली के वरिष्ठ कार्डियोलोजिस्ट और फिजिसियन डॉ आई पी एस कालरा कहते हैं की प्रार्थना अमृत संजीविनी हैं । अमेरिका में कई अस्पतालों में प्रार्थनाओ से मरीजो को बहुत ही चमत्कारिक लाभ प्राप्त हुए हैं। कुछ बच्चो को मरीजो के लिए प्रार्थना करने के लिए रखा गया हैं साथ ही कई सारे प्रयोग भी किये जा चुके है।
'न्यूयार्क टाईजस' के लेख में चिकित्सको की राय लेकर लिखा था की "....the medicine of the future is going to be prayer." अर्थात भविष्य में तो प्रार्थना ही सब से बड़ी दवा बन कर रह जाएगी ।
इससे ये तात्पर्य निकलता हैं की प्रार्थना अगर सच्चे मन से की जाये तो उसका सकारात्मक प्रभाव जरूर पड़ता हैं ।
"प्रार्थना हमेशा समर्थ से ही की जाती है।"
हरी ॐ 

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