Friday 5 April 2019

हिन्दू नव वर्ष संवत २०७६ एवं कलश स्थापना एवं चैत्र नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं।।


आप सभी को हिन्दू नव वर्ष संवत २०७६ एवं चैत्र नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें। मां भगवती देवी दुर्गा आप सभी के परिवार में सुख, शांति, उन्नति और समृद्धि लाएं और सब प्रकार से रक्षा करें। आपकी मनोकामनाएं पूरी हों, ऐसी मां भगवती से मेरी प्रार्थना है। नवरात्रि का पर्व सनातन धर्म में साल में दो बार आता है। नवरात्रि का अर्थ होता है, नौ रातें। एक शरद माह की नवरात्रि और दूसरी बसंत माह की नवरात्रि।

इस पर्व के दौरान तीन प्रमुख देवियों- मां काली, मां लक्ष्मी और मां सरस्वती के नौ स्वरुपों श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कुष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री का पूजन विधि विधान से किया जाता है, जिन्हे नवदुर्गा कहते हैं।


यह है घट स्थापना का समय :-

साल २०१९ में चैत्र नवरात्र का आगाज़ ६ अप्रैल २०१९ होने जा रहा है, चैत्र नवरात्र का प्रारम्भ चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिप्रदा से होता है। चैत्र में आने वाले नवरात्र में अपने कुल देवी-देवताओं की पूजा का विशेष प्रावधान माना गया है। चैत्र नवरात्रि प्रभु राम के जन्मोत्सव से जुड़ी है। चैत्र नवरात्र मां की शक्तियों को जगाने का आह्वान है ताकि हम संकटों, रोगों, दुश्मनों, आपदाओं का सामना कर सकें और उनसे हमारा बचाव हो सके।

वही नवरात्र के पहले दिन ही कलश स्थापना का विधान है। लेकिन कलश स्थापना भी शुभ मुहूर्त में ही होना चाहिए। चैत्र नवरात्र २०१९ के कलश स्थापना के शुभ समय की बात करें तो आप सुबह ०६:०९ बजे से लेकर सुबह १०:१९ बजे तक कलश स्थापित कर सकते हैं।


यह है कलश स्थापना के लिए सामान :-

शारदीय नवरात्रि के लिए मिट्टी का पात्र और जौ, शुद्ध, साफ मिट्टी, शुद्ध जल से भरा हुआ सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी का कलश, मोली (कलवा), साबुत सुपारी, कलश में रखने के लिए सिक्के, फूल और माला, अशोक या आम के 5 पत्ते, कलश को ढकने के लिए मिट्टी का ढक्कन, साबुत चावल, एक पानी वाला नारियल, लाल कपड़ा या चुनरी की आवस्यकता होती है।


ऐसे करें कलश स्थापना :-
  • नवरात्रि में कलश स्थापना करने के दौरान सबसे पहले पूजा स्थल को शुद्ध कर लें।
  • लकड़ी की चौकी रखकर उसपर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं।
  • कपड़े पर थोड़े-थोड़े चावल रखें।
  • चावल रखते हुए सबसे पहले गणेश जी का स्मरण करें।
  • एक मिट्टी के पात्र में जौ बोयें।
  • इस पात्र पर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें।
  • कलश पर रोली से स्वस्तिक या ऊँ बनायें।
  • कलश के मुख पर कलवा बांधकर इसमें सुपारी, सिक्का डालकर आम या अशोक के पत्ते रखें।
  • कलश के मुख को चावल से भरी कटोरी से ढक दें।
  • एक नारियल पर चुनरी लपेटकर इसे कलवे से बांधें और चावल की कटोरी पर रख दें।
  • सभी देवताओं का आवाहन करें और धूप दीप जलाकर कलश की पूजा करें।
  • भोग लगाकर मां की आरती करें।

इन देवियों की होती है पूजा


  1. नवरात्रि प्रथम - शैलपुत्री
  2. नवरात्रि द्वितीय - ब्रह्मचारिणी
  3. नवरात्रि तृतीय - चंद्रघंटा
  4. नवरात्रि चतुर्थी - कुष्मांडा
  5. नवरात्रि पंचमी - स्कंदमाता
  6. नवरात्रि षष्ठी - कात्यायनी
  7. नवरात्रि सप्तमी - कालरात्रि
  8. नवरात्रि अष्टमी - महागौरी
  9. नवरात्रि नवमी - सिद्धिदात्री

नवमी पर बाल कन्याओं की पूजा के साथ होता है उद्यापन :-

वही नवमी पर खास तौर से बाल कन्याओं की पूजा की जाती है और उन्हे हलवे, पूरी का भोग लगाकर नवरात्रि व्रत का उद्यापन किया जाता है।    

प्रथम दिवस नवदुर्गा : माँ शैलपुत्री

॥ जय माता दी ॥