Friday 5 April 2019

हिन्दू नव वर्ष संवत २०७६ एवं कलश स्थापना एवं चैत्र नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं।।


आप सभी को हिन्दू नव वर्ष संवत २०७६ एवं चैत्र नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें। मां भगवती देवी दुर्गा आप सभी के परिवार में सुख, शांति, उन्नति और समृद्धि लाएं और सब प्रकार से रक्षा करें। आपकी मनोकामनाएं पूरी हों, ऐसी मां भगवती से मेरी प्रार्थना है। नवरात्रि का पर्व सनातन धर्म में साल में दो बार आता है। नवरात्रि का अर्थ होता है, नौ रातें। एक शरद माह की नवरात्रि और दूसरी बसंत माह की नवरात्रि।

इस पर्व के दौरान तीन प्रमुख देवियों- मां काली, मां लक्ष्मी और मां सरस्वती के नौ स्वरुपों श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कुष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री का पूजन विधि विधान से किया जाता है, जिन्हे नवदुर्गा कहते हैं।


यह है घट स्थापना का समय :-

साल २०१९ में चैत्र नवरात्र का आगाज़ ६ अप्रैल २०१९ होने जा रहा है, चैत्र नवरात्र का प्रारम्भ चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिप्रदा से होता है। चैत्र में आने वाले नवरात्र में अपने कुल देवी-देवताओं की पूजा का विशेष प्रावधान माना गया है। चैत्र नवरात्रि प्रभु राम के जन्मोत्सव से जुड़ी है। चैत्र नवरात्र मां की शक्तियों को जगाने का आह्वान है ताकि हम संकटों, रोगों, दुश्मनों, आपदाओं का सामना कर सकें और उनसे हमारा बचाव हो सके।

वही नवरात्र के पहले दिन ही कलश स्थापना का विधान है। लेकिन कलश स्थापना भी शुभ मुहूर्त में ही होना चाहिए। चैत्र नवरात्र २०१९ के कलश स्थापना के शुभ समय की बात करें तो आप सुबह ०६:०९ बजे से लेकर सुबह १०:१९ बजे तक कलश स्थापित कर सकते हैं।


यह है कलश स्थापना के लिए सामान :-

शारदीय नवरात्रि के लिए मिट्टी का पात्र और जौ, शुद्ध, साफ मिट्टी, शुद्ध जल से भरा हुआ सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी का कलश, मोली (कलवा), साबुत सुपारी, कलश में रखने के लिए सिक्के, फूल और माला, अशोक या आम के 5 पत्ते, कलश को ढकने के लिए मिट्टी का ढक्कन, साबुत चावल, एक पानी वाला नारियल, लाल कपड़ा या चुनरी की आवस्यकता होती है।


ऐसे करें कलश स्थापना :-
  • नवरात्रि में कलश स्थापना करने के दौरान सबसे पहले पूजा स्थल को शुद्ध कर लें।
  • लकड़ी की चौकी रखकर उसपर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं।
  • कपड़े पर थोड़े-थोड़े चावल रखें।
  • चावल रखते हुए सबसे पहले गणेश जी का स्मरण करें।
  • एक मिट्टी के पात्र में जौ बोयें।
  • इस पात्र पर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें।
  • कलश पर रोली से स्वस्तिक या ऊँ बनायें।
  • कलश के मुख पर कलवा बांधकर इसमें सुपारी, सिक्का डालकर आम या अशोक के पत्ते रखें।
  • कलश के मुख को चावल से भरी कटोरी से ढक दें।
  • एक नारियल पर चुनरी लपेटकर इसे कलवे से बांधें और चावल की कटोरी पर रख दें।
  • सभी देवताओं का आवाहन करें और धूप दीप जलाकर कलश की पूजा करें।
  • भोग लगाकर मां की आरती करें।

इन देवियों की होती है पूजा


  1. नवरात्रि प्रथम - शैलपुत्री
  2. नवरात्रि द्वितीय - ब्रह्मचारिणी
  3. नवरात्रि तृतीय - चंद्रघंटा
  4. नवरात्रि चतुर्थी - कुष्मांडा
  5. नवरात्रि पंचमी - स्कंदमाता
  6. नवरात्रि षष्ठी - कात्यायनी
  7. नवरात्रि सप्तमी - कालरात्रि
  8. नवरात्रि अष्टमी - महागौरी
  9. नवरात्रि नवमी - सिद्धिदात्री

नवमी पर बाल कन्याओं की पूजा के साथ होता है उद्यापन :-

वही नवमी पर खास तौर से बाल कन्याओं की पूजा की जाती है और उन्हे हलवे, पूरी का भोग लगाकर नवरात्रि व्रत का उद्यापन किया जाता है।    

प्रथम दिवस नवदुर्गा : माँ शैलपुत्री

॥ जय माता दी ॥

Sunday 7 October 2018

प्राणायाम के प्रकार - भाग -२

'शरीर और मन के बीच की कड़ी है प्राणायाम' 


प्राण, अपान, समान आदि वायुओं से मन को रोकने और शरीर को साधने का अभ्यास करना अर्थात प्राणों को आयाम देना ही प्राणायाम है। 



'प्राणस्य आयाम: इत प्राणायाम'। ''श्वासप्रश्वासयो गतिविच्छेद: प्राणायाम''-(यो.सू. 2/49) 



अर्थात प्राण की स्वाभाविक गति श्वास-प्रश्वास को रोकना प्राणायाम है। वेद और योग में आठ प्रकार की वायु का वर्णन मिलता है, जिनमें जीव विचरण करता है। योगी के लिए सभी साध्य हैं।

आयु : प्राणायाम का अर्थ होता है प्राणवायु या शक्ति का विस्तार। सबमें निहित है प्राणशक्ति। शरीर और मन के बीच की कड़ी है प्राण। प्राणों से ही शरीर और मन को शक्ति मिलती है। प्राण को आयु भी कहते हैं अर्थात प्राणायाम से दीर्घायु हुआ जा सकता है।

श्वास-प्रश्वास : शरीर शक्ति प्राप्त करता है श्वसन क्रिया से। यदि आपकी श्वास में रुकावट है तो सभी अंगों पर इसका प्रभाव पड़ता है। श्वास का तेज चलना या अत्यंत धीमे चलने से रक्त प्रवाह और अन्य अंगों की कार्यप्रणाली में व्यवधान उत्पन्न होता है। यह श्वास कैसे पुष्ट हो, स्वस्थ हो और लय में चले, इसके लिए योग में प्राणायाम की विधियों का प्रावधान है। श्वास-प्रश्वास से शरीर की मुख्य नाडि़यों का संचालन होता है। वे प्रमुख नाडि़याँ तीन हैं। पहली इड़ा, दूसरी पिंगला और तीसरी सुसुम्ना।

इड़ा या चंद्र नाड़ी : यह शरीर के बाएँ भाग को नियंत्रण करती है। यह ठंडी है तथा मानव के विचारों और भावों को नियंत्रित करती है।



पिंगला या सूर्य नाड़ी : यह शरीर के दाएँ भाग का नियंत्रण करती है। यह गर्म है तथा व्यक्ति में प्राण-शक्ति का नियंत्रण करती है।

सुसुम्ना : यह मध्य नाड़ी है। मेरुदंड के मध्य में होकर मूलाधार तक जाती है। न गर्म न ठंडी, परंतु दोनों के संग लय में सहायक होती है। यह प्रकाश, ज्ञान और जागरण देती है।

इन तीनों नाडि़यों में ठीक-ठीक संतुलन हो तो इनमें आरोग्य, बल, शांति तथा लम्बी आयु प्रदान करने की क्षमता है। इनमें संतुलन प्राणायाम की विधियों से होता है। यह तीनों नाडि़याँ शरीर की समस्त रक्त नलियों, कोशिकाओं आदि का केंद्र हैं। इन नाडि़यों से ही इन्हें शक्ति मिलती है। प्राणायाम के नियमित अभ्यास से जहाँ मन की ग्रंथियों से मुक्ति मिलती है, वहीं जीवनशक्ति बढ़ती है।

प्राणायाम के प्रकार :-


1.  कपालभांति प्राणायाम :: 

सबसे पहले किसी साफ़ और खुली जगह पर पद्मासन या सुखासन में बैठ जाये। अब अपनी सासों को लगातार बाहर की ओर फेके, ध्यान रहे आपको सासें लेनी नहीं है सिर्फ बाहर की और धकेलनी है,जब थकान लगे तब रुक जाये, शुरुआत में 20 से 25 बार लगातार सासों को बाहर की ओर धकलने का प्रयत्न करे। इस तरह कुछ देर रूककर फिर 20 से 25 बार करे. शुरुआती दिनों में 1 मिनट तक करने की कोशिश करे और फिर धीरे धीरे समय बढाकर 2 मिनट, 3 मिनट, 5 मिनट तक करे। माना जाता है कपालभाती अकेला ऐसा योग है जो सब बिमारियों का इलाज़ है. अगर हमेशा स्वस्थ्य रहना चाहते है तो दिन का थोडा सा समय अपने शरीर के लिए निकालकर रोज सुबह यह प्राणायाम  जरुर करे। 
लाभ::
  1. इस प्राणायाम से चेहरे पर हमेशा ताजगी, प्रसन्नता और शांति दिखाई देगी। कब्ज और डाइबिटिज की बीमारी से परेशान लोगों के लिए यह काफी फायदेमंद है। दिमाग से संबंधित रोगों में लाभदायक है।
  2. वजन को सही करता है जो लोग ज्यादा वजन से परेशान है वे इस प्राणायाम से बहुत कम समय में ही फायदा प्राप्त कर सकते हैं। इससे वजन संतुलित रहता है।
  3. इसको लगातार करने से पेट सबंधित सभी बीमारियों को ये जड़ से समाप्त क्र देता है।
2. अनुलोम-विलोम (नाड़ी शोधन) प्राणायाम::
अनुलोम-विलोम करने के लिए पहले सुखासन या पद्मासन में बैठ जाएं और आंखें बंद कर लें।फिर अपना दाएं हाथ के अंगूठे से नाक के के दाएं छिद्र को बंद कर लें और बाएं छिद्र से भीतर की ओर सांस खीचें। अब बाएं छिद्र को अंगूठे के बगल वाली दो अंगुलियों से बंद करें। दाएं छिद्र से अंगूठा हटा दें और सांस छोड़ें। अब इसी प्रक्रिया को बाएं छिद्र के साथ दोहराएं। यही क्रिया कम से कम 10 बार, उलट-पलट कर करें। इसे प्रतिदिन 7-10 मिनट तक करने की आदत डालें।
लाभ::
  1. मानव शरीर में स्थित 72 हज़ार नाड़ियों को हर तरीके से शुद्ध करने में बहुत अहम भूमिका निभाता है जिससे शरीर की असंख्य बीमारियों का नाश अपने आप धीरे धीरे होने लगता है।
  2. हमारे शरीर से सभी प्रकार की बीमारियों को दूर करने में सहायक है ।

3. सूर्यभेदी प्राणायम::
किसी भी सुविधाजनक आसन में बैठ जाएं। बायीं नाक बंद करके दाई नाक से सास खींचे। जब सांस पूरी भर जाए, तब कुंभक करें। इस कुंभक को उतना ही देर तक करना चाहिए, जिससे किसी भी अंग पर दबाव न पड़े। फिर बायीं नाक से सांस धीरे धीरे निकाल दे।यही क्रिया कम से कम 10 बार करें।
लाभ::
  1. इस प्राणायाम से मस्तिष्क शुद्ध होता है। 
  2. वातदोष का नाश होता है। साथ ही कृमि दोष नष्ट होते हैं। 
  3. यह सूर्य भेदन कुंभक बार-बार करना चाहिए पर गर्मी में कम करना चाहिए । 
  4. इससे सभी उदर-विकार दूर होते हैं और जठराग्नि बढ़ती है|
4. चंद्रभेदी प्राणायाम::
किसी भी शांत एवं स्वच्छ वातावरण वाले स्थान पर सुखासन में बैठ जाएं। अब नाक के बाएं छिद्र से सांस अंदर खींचें। पूरक अथवा सांस धीरे-धीरे गहराई से लें। अब नाक के दोनों छिद्रों को बंद करें। अब सांस को रोक लें (कुंभक करें) फिर थोड़ी देर बाद नाक के दाएं छिद्र से सांस छोड़ दें। यही क्रिया कम से कम 10 बार करें।
लाभ::
  1. शरीर में शीतलता आती है और मन प्रसन्न रहता है। 
  2. पित्त रोग में फायदा होता है। 
  3. यह प्राणायाम मन को शांत करता है और क्रोध पर नियंत्रण लगाता है। 
  4. अत्यधिक कार्य होने पर भी मानसिक तनाव महसूस नहीं होता। दिमाग तेजी से कार्य करने लगता है।
  5. हाई ब्लड प्रेशर वालों को इस प्राणायाम से विशेष लाभ प्राप्त होता है।
5. भस्त्रिका प्राणायाम::
समतल और हवादार स्थान पर किसी भी आसन जैसे पदमासन या सुखापन में बैठकर इस क्रिया को किया जाता है। दोनों हाथ को दोनों घुटनों पर रखें। अब नाक के दोनों छिद्र से तेजी से गहरी सांस लें। फिर सांस को बिना रोकें, बाहर तेजी से छोड़ दें।
लाभ::
  1. इस क्रिया के अभ्यास से फेफड़े में स्वच्छ वायु भरने से फेफड़े स्वस्थ्य और रोग दूर होते हैं। 
  2. यह आमाशय तथा पाचक अंग को स्वस्थ्य रखता है। 
  3. इससे पाचन शक्ति और वायु में वृद्धि होती है तथा शरीर में शक्ति और स्फूर्ति आती है। 
  4. इस क्रिया से सांस संबंधी कई बीमारियां दूर ही रहती हैं।
6. बाह्य प्राणायाम::
सुखासन या पद्मासन में बैठें। साँस को पूरी तरह बाहर निकालने के बाद साँस बाहर ही रोककर रखने के बाद तीन बन्ध एक साथ लगाने पड़ते है ! ये तीनो बंध हैं - जालंधर बन्ध (गले को पूरा सिकोड कर ठोडी को छाती से सटा कर रखना है), उड़ड्यान बन्ध (पेट को पूरी तरह अन्दर पीठ की तरफ खीचना है), मूल बन्ध (मल विसर्जन करने की जगह को पूरी तरह ऊपर की तरफ खींचना है) !
लाभ::
  1. तात्कालिक रूप से कब्ज, ऐसिडिटी, गैस आदि जैसी पेट की सभी समस्याओं से आराम मिलता है। 
  2. हर्निया ठीक होता है। 
  3. धातु, पेशाब से संबंधित सभी समस्याएँ मिटती हैं। 
  4. मन की एकाग्रता बढ़ती है। 
7. सीत्कारी (शीतकारी) प्राणायाम::
सबसे पहले आप पद्मासन या किसी भी आरामदायक आसन में बैठें और आंखों को बंद करें।अब अपने हाथों को ज्ञानमुद्रा या अंजलिमुद्रा में घुटनों पर रखें, तालु में जीभ को कसकर सटाएं। दोनों जबड़ों को दातों से भींचकर रखें और होंठ खुले रखें, ‘सि’ की सिसकी ध्वनि के साथ मुंह से वायु अंदर खींचें। अपने हिसाब से सांस को अंदर रोके रखें, उसके बाद दोनों नासिकाओं से धीरे-धीरे श्वास छोड़े।
लाभ::
  1. इसके लम्बे अभ्यास से भूख प्यास पर विजय प्राप्त होती है ! 
  2. शरीर चमकदार और चिर युवा रहता है ! 
  3. पेट की गर्मी और जलन शांत होती है । 
  4. शरीर पर स्थित झुर्रियां, फोड़ा, फुन्सिया, मुहांसे आदि का नाश होता है ! 
  5. डायबिटीज जैसे जिद्दी रोगों में भी बहुत फायदेमंद है !
8. शीतली प्राणायाम::
सबसे पहले आप पद्मासन या किसी भी आरामदायक आसन में बैठें,आंखों को बंद करें। अब अपने हाथों को ज्ञानमुद्रा या अंजलिमुद्रा में घुटनों पर रखें। दोनों किनारों से जिह्वा को मोड़कर नली का आकार बना लें। नली के आकार की जिह्वा से श्वास अंदर खींचकर फेफड़ों को अपनी पूरी क्षमता के साथ भर लें और मुंह बंद कर लें। जालंधरबंध को रोककर रखें। जालंधरबंध के साथ जबतक श्वास को अंदर रोक सकते हैं, रोककर रखें। जालंधरबंध को छोड़ दें और धीरे-धीरे नासिका से श्वास छोड़ें।
लाभ::
  1. इस प्राणायाम के अभ्यास से बल एवं सौन्दर्य बढ़ता है। रक्त शुद्ध होता है। 
  2. भूख, प्यास, ज्वर (बुखार) और तपेदिक पर विजय प्राप्त होती है। 
  3. शीतली प्राणायाम ज़हर के विनाश को दूर करता है। अभ्यासी में अपनी त्वचा को बदलने की सामर्थ्य होती है।
  4. यह प्राणायाम अनिद्रा, उच्च रक्तचाप, हृदयरोग और अल्सर में रामबाण का काम करता है। 
  5. चिड़-चिड़ापन, बात-बात में क्रोध आना, तनाव तथा गर्म स्वभाव के व्यक्तियों के लिए विशेष लाभप्रद है।
  6. ज्यादा पसीना आने की शिकायत से आराम मिलता है। पेट की गर्मी और जलन को कम करने के लिये। 
9.उज्जायी प्राणायाम::
सुखासन या पद्मासन में बैठकर सिकुड़े हुये गले से आवाज करते हुए सांस को अन्दर खीचना होता है।
लाभ::
  1. थायराँइड की शिकायत से आराम मिलता है। 
  2. तुतलाना, हकलाना, ये शिकायत भी दूर होती है। 
  3. अनिद्रा, मानसिक तनाव भी कम करता है। टी•बी•(क्षय) को मिटाने मे मदद होती है। 
  4. गूंगे लोगों के लिए बहुत फायदेमंद है क्योंकि इसके लम्बे अभ्यास से आवाज वापस आने की संभावना रहती है ! 
  5. गले में स्थित रहस्यमय विशुद्ध चक्र का जागरण होता है !
10. भ्रामरी प्राणायाम::
सुखासन या पद्मासन में बैठें। दोनो अंगूठों से कान पूरी तरह बन्द करके, दो उंगलिओं को माथे पर रख कर, छः उंगलियों को दोनो आँखो पर रख दे। लंबी साँस भरने के बाद, सांस को धीरे धीरे कण्ठ से भवरें जैसा (ॐ या हम्म्म्म) की आवाज करते हुए निकालना है।
लाभ::
  1. सायकीक पेंशेट्स को फायदा मिलता है। वाणी तथा स्वर में मधुरता आती है। 
  2. ह्रदय रोग के लिए काफी फायदेमंद है। मन की चंचलता दूर होती है एवं मन एकाग्र होता है।
  3. पेट के विकारों का शमन करती है। उच्च रक्त चाप पर नियंत्रण करता है। 
  4. थायराइड की समस्या दूर करता है ! 
  5. कंठ स्थित विशुद्ध चक्र का जागरण होता है ! 
  6. इस प्राणायाम के अभ्यास से मन शांत होता है। और मानसिक तनाव (stress/depression) दूर हो जाता है।
  7. भ्रामरी प्राणायाम उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure) की बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को भी लाभदायी होता है। 
  8. इस प्राणायाम को करने से माइग्रेन/अर्धशीशी (Migraine) के रोगी को भी लाभ होता है।
  9. भ्रामरी प्राणायाम से मस्तिस्क की नसों को आराम मिलता है। और हर प्रकार के रक्त दोष मिटते हैं। 

      Friday 12 January 2018

      सूर्य-नमस्कार करने के फायदे

      १. प्राथमिक सूर्य नमस्कार पूरे शरीर को मजबूत करता है।
      २. कब्ज से राहत देता है और स्वस्थ पाचन को बढ़ावा देता है।
      ३. मस्तिष्क, निचली जाल, रीढ़ की हड्डी आदि सहित तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित करता है।
      ४. सूर्य नमस्कार योग को स्मृति हानि को रोकने में सहायक होता है, फोकस और एकाग्रता बनाता है, मस्तिष्क के कामकाज में सुधार करता है। शरीर में मस्तिष्क कोशिकाओं को सक्रिय करता है।
      ५. यह रक्तचाप का इलाज करने के लिए एक अच्छी तरह से ज्ञात उपाय है और हृदय की मांसपेशियों को मजबूत करता है यह अनियमित दिल की धड़कन को भी ठीक करता है
      ६. फेफड़ों की क्षमता में सुधार, ऑक्सीजन की आपूर्ति को उत्तेजित करता है और शरीर में सभी महत्वपूर्ण अंगों को नियंत्रित करता है।
      ७. रक्त परिसंचरण में सुधार के लिए अत्यधिक फायदेमंद। त्वचा को सुंदर चमक प्रदान करता है।
      ८. वजन घटाने को बढ़ावा देता है ।
      ९. मासिक धर्म में ऐंठन का प्रबंधन करने के लिए एक प्रसिद्ध उपाय है, और रजोनिवृत्ति के स्तर को प्रबंधित करने में भी उपयोगी है। एक महिला के गर्भाशय पर अपने सशक्त प्रभाव के कारण, सूर्य नमस्कार योग भी बच्चे के जन्म को तुलनात्मक रूप से आसान बनाने में मदद करता है।
      १०. तनावपूर्ण जोड़ों की समस्याओं को कम करता है गले की मांसपेशियों और जोड़ों को लुब्रिकेट करती है और उनके स्वस्थ कामकाज को बढ़ावा देता है। गठिया, कटिस्नायुशूल, अन्य संयुक्त संबंधित बीमारियों आदि के प्रबंधन में अत्यधिक फायदेमंद।
      ११. व्यक्ति के शरीर के मानसिक और शारीरिक संतुलन में सुधार। मस्तिष्क और शरीर की मानसिक क्षमता में वृद्धि करके धैर्य विकसित और ताकत को विकसित करता है।
      १२. शरीर की लचीलेपन में सुधार और कठोरता ख़त्म करता है।
      १३. किडनी के कार्य को सुचारु रूप से क्रियान्वित करता है।
      १४. फेफड़े का विकास, आपको हवा देता है और तपेदिक को रोकता है।
      १५. रक्त की गुणवत्ता और रक्त परिसंचरण में सुधार रक्त का सक्रिय संचलन।
      १६. गर्दन, कंधे, हथियार, कलाई, उंगलियां, पीठ, पेट, कमर, पेट, आंतों, जांघों, घुटनों, बछड़ों और टखनों को मजबूत करता है पीठ को सुदृढ़ करने के लिए गुर्दा की समस्याओं के लिए एक सरल लेकिन कुशल उपाय माना जाता है।
      १७. मासिक धर्म में ऐंठन का प्रबंधन करने के लिए एक प्रसिद्ध उपाय है, और रजोनिवृत्ति के स्तर को प्रबंधित करने में भी उपयोगी है। एक महिला के गर्भाशय पर अपने सशक्त प्रभाव के कारण, सूर्य नमस्कार योग भी बच्चे के जन्म को तुलनात्मक रूप से आसान बनाने में मदद करता है।
      १८. यदि स्थिति सही ढंग से निष्पादित की जाती है तो शरीर की ऊँचाई में वृद्धि होगी।
      १९. शरीर की नकारात्मक ऊर्जा को ख़त्म के आध्यात्म की तरफ प्रेरित करता है।
      २०. संक्षेप में, जीवन, स्वास्थ्य, शक्ति, दक्षता और दीर्घायु के लिए दरवाजा खुल जाते हैं।


      स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के लिए योग अभियान

      स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के लिए योग अभियान का आरम्भ किया गया है, इसी सिलसिले में योग का आयोजन पिछले कई सप्ताह से किया जा रहा है। आज कल स्वास्थ्य से सम्बंधित परेशानियों से सभी रूबरू हो रहे हैं इसका प्रमुख कारण है हमारी जीवन शैली और आज कल का खान - पान, साथ ही हम व्यायाम के लिए समय नहीं निकाल पाते हैं। हम लोग सभी को स्वस्थ रखने का प्रयास कर रहे हैं उसी से सम्बंधित सभी योग प्रेमी एवं स्वास्थ्य प्रेमी को सलाह एवं तकनीक बताते हैं जिसको वो घर पर भी प्रतिदिन ३० मिनट का समय देकर खुद को एवं परिवार को स्वस्थ रख सकते हैं।




      Wednesday 20 September 2017

      कलश स्थापना एवं नवरात्रि की शुभकामनाएं 2017

      आप सभी को मेरी ओर से नवरात्र की हार्दिक शुभकामनायें। मां भगवती देवी दुर्गा आप सभी के परिवार में सुख, शांति, उन्नति और समृद्धि लाएं और सब प्रकार से रक्षा करें।

      आपकी मनोकामनाएं पूरी हों, ऐसी मां भगवती से मेरी प्रार्थना है।
      नवरात्रि का पर्व सनातन धर्म में साल में दो बार आता है। नवरात्रि का अर्थ होता है, नौ रातें। एक शरद माह की नवरात्रि और दूसरी बसंत माह की नवरात्रि।
      इस पर्व के दौरान तीन प्रमुख देवियों- मां काली, मां लक्ष्मी और मां सरस्वती के नौ स्वरुपों श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कुष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री का पूजन विधि विधान से किया जाता है, जिन्हे नवदुर्गा कहते हैं।
      यह है घट स्थापना का समय :-
      नवरात्रों में सबसे अहम माता की चौकी होती है, जिसे शुभ मुहूर्त देखकर लगाया जाता है, माता की चौकी लगाना के लिए भक्तों के पास 21 सितंबर को सुबह 06 बजकर 03 मिनट से लेकर 08 बजकर 22 मिनट तक का समय है।


      यह है कलश स्थापना के लिए सामान :-
      शारदीय नवरात्रि के लिए मिट्टी का पात्र और जौ, शुद्ध, साफ मिट्टी, शुद्ध जल से भरा हुआ सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी का कलश, मोली (कलवा), साबुत सुपारी, कलश में रखने के लिए सिक्के, फूल और माला, अशोक या आम के 5 पत्ते, कलश को ढकने के लिए मिट्टी का ढक्कन, साबुत चावल, एक पानी वाला नारियल, लाल कपड़ा या चुनरी की आवस्यकता होती है।
      ऐसे करें कलश स्थापना
      -नवरात्रि में कलश स्थापना करने के दौरान सबसे पहले पूजा स्थल को शुद्ध कर लें।
      -लकड़ी की चौकी रखकर उसपर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं।
      -कपड़े पर थोड़े-थोड़े चावल रखें।
      -चावल रखते हुए सबसे पहले गणेश जी का स्मरण करें।
      -एक मिट्टी के पात्र में जौ बोयें।
      -इस पात्र पर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें।
      -कलश पर रोली से स्वस्तिक या ऊँ बनायें।
      -कलश के मुख पर कलवा बांधकर इसमें सुपारी, सिक्का डालकर आम या अशोक के पत्ते रखें।
      -कलश के मुख को चावल से भरी कटोरी से ढक दें।
      -एक नारियल पर चुनरी लपेटकर इसे कलवे से बांधें और चावल की कटोरी पर रख दें।
      -सभी देवताओं का आवाहन करें और धूप दीप जलाकर कलश की पूजा करें।
      -भोग लगाकर मां की आरती करें।

      शारदीय नवरात्र 2017 में मां के 9 रूपों की पूजा होती है.
      - 21 सितंबर 2017 : मां शैलपुत्री की पूजा  
      - 22 सितंबर 2017 : मां ब्रह्मचारिणी की पूजा  
      - 23 सितंबर 2017 : मां चन्द्रघंटा की पूजा  
      - 24 सितंबर 2017 : मां कूष्मांडा की पूजा  
      - 25 सितंबर 2017 : मां स्कंदमाता की पूजा  
      - 26 सितंबर 2017 : मां कात्यायनी की पूजा  
      - 27 सितंबर 2017 : मां कालरात्रि की पूजा
      - 28 सितंबर 2017 : मां महागौरी की पूजा  
      - 29 सितंबर 2017 : मां सिद्धदात्री की पूजा 
      - 30 सितंबर 2017: दशमी तिथि, दशहरा।


      Sunday 15 January 2017

      प्राणायाम क्या है ? भाग -१

      प्राणायाम योगसाधना का एक महत्वपूर्ण अंग है। जिसके अभाव में योगसाधना का समुचित लाभ प्राप्त नहीं होता है।
      प्राणायाम = प्राण + आयाम। इसका का शाब्दिक अर्थ है - 'प्राण (श्वसन) को लम्बा करना' या 'प्राण (जीवनीशक्ति) को लम्बा करना'। इस प्राण जीवन शक्ति को स्वस्थ, स्थिर, नियंत्रित व विस्तृत करना ही प्राणायाम है।
      हमारे शरीर का मुख्य आधार प्राणवायु ही है, अगर इसका अस्तित्व शरीर से ख़त्म हो जाये तो इंसान का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता है।

      प्राणायाम करते या श्वास लेते समय हम तीन क्रियाएँ करते हैं-
      1.पूरक  अर्थात श्वास अंदर लेना
      2.रेचक अर्थात श्वास बाहर छोड़ना
      3.कुम्भक
       -> आंतरिक कुम्भक अर्थात अंदर श्वास रोकना
       -> बाह्म कुम्भक अर्थात बाहर श्वास रोकना
      इसे ही हठयोगी अभ्यांतर वृत्ति, स्तम्भ वृत्ति और बाह्य वृत्ति कहते हैं।




      प्राणायाम संबंधी कुछ नियम एवम सावधानियाँ :-
      १. प्राणायाम करने से पहले हमारा शरीर अन्दर से और बाहर से शुद्ध होना चाहिए।
      २. प्राणायाम करने का स्थान स्वच्छ, हवादार, शांतिमय और पवित्र होना चाहिए।
      ३. प्राणायाम सुखासन, पद्मासन, सिद्धासन एवम वज्रासन में बैठ के करना चाहिए।
      ४. बैठने के लिए नीचे अर्थात भूमि पर आसन बिछाना चाहिए।
      ५. मेरुदण्ड, गर्दन,कमर एवम छाती को सीधा रखें।
      ६. प्राणायाम के लिए प्रात: एवम सायं का समय उत्तम है।
      ७. प्राणायाम खाली पेट ही करना चाहिए या भोजन करने के ३-४ घंटे बाद ही करना चाहिए।
      ८. ज्यादा भूख, किसी तीव्र रोग, ज्वर आदि की समय नहीं करना चाहिए ।
      ९. प्राणायाम में भोजन विशेष रूप से हल्का एवम सुपाच्य लेना चाहिए।
      १०. जिन लोगो को उच्च रक्त-चाप की शिकायत है, उन्हें अपना रक्त-चाप साधारण होने के बाद धीमी गति से प्राणायाम करना चाहिये।
      ११. ब्रमचर्य(सभी इन्द्रिय जनित सुखो में संयम बरतना) के पालन का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
      १२. साँसे लेते समय मन ही मन भगवान से प्रार्थना करनी है कि "हमारे शरीर के सारे रोग शरीर से बाहर निकाल दें और हमारे शरीर में ऊर्जा, ओज, तेजस्विता डाल दें"।

      श्वास में पूरक,कुम्भक और रेचक का अनुपात १:४:२ रखना चाहिए।

      जल्द ही अगले भाग में प्राणायाम करने के तरीके का उल्लेख करेंगे।

      Saturday 8 October 2016

      नवम दिवस नवदुर्गा : माँ सिद्धिदात्री

      नवरात्र के अंतिम दिन देवी दुर्गा की नवीं शक्ति और भक्तों को सब प्रकार की सिद्धियां प्रदान करनेवाली मां सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है। मार्कंडेय पुराण के अनुसार माता अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ प्रकार की सिद्धियां प्रदान करनेवाली हैं, जिस कारण इनका नाम सिद्धदात्री पड़ा। अपने लौकिक रूप में मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं. इनका वाहन सिंह है. ये कमल के पुष्प पर आसीन हैं. आस्थावान भक्तों की मान्यता है कि इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ माता की उपासना करने से उपासक को सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती है। देवी पुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था और इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था, जिस कारण भोलेनाथ अर्द्धनारीश्वर नाम से विख्यात हुए।


       माँ सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना के लिए यह मंत्र है--
      सिद्ध गन्धर्व यज्ञद्यैर सुरैर मरैरपि |
      सेव्यमाना सदा भूयात्सिद्धिदा सिद्धि दायिनी ||

      हरी ॐ