Saturday 20 August 2016

दुःख का कारण ? क्या करे दुःख के समय में ?

दुःख का कारण:
मैं ये अपना अनुभव बॉट रहा हूं, जो की मैंने अनुभव किया है। 

हमें दुःख तब होता है है जब हम किसी भी बात का आकलन उसके परिणाम आने से पहले ही कर लेते है और यदि उसके परिणाम हमारे अनुसार आये तब तो बहुत अच्छा लगता है अगर नहीं आये तो हमें दुःख होता है। फिर हम खुद का आकलन करने लगते है या कुछ समय के लिए बहुत परेशान होने लगते है, ये साधारण बात है हम मनुष्य जाति के अंदर। हमें चाहिए की हम आकलन करे लेकिन अपने आप को मजबूत भी रखे अगर परिणाम आशानुरूप नहीं आये तो हम फिर से उठ खड़े होंगे। ये तो दुःख की बात थी।
श्रीकृष्ण ने अर्जुन ही नहीं मनुष्य मात्र को यह उपदेश दिया है कि 'कर्म करो और फल की चिंता मत करो'। फल की इच्छा रखते हुए भी कोई काम मत करो। जब इच्छित फल की हमें प्राप्ति नहीं होती है तो हमें दुख होता है। अतः सुखी रहना है तो सिर्फ कर्म करो और वह भी निष्काम भाव से।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ २-४७

"श्री कृष्ण भगवान ने अर्जुन से कहा: आप को अपने निर्धारित कर्तव्य का पालन करने का अधिकार है, लेकिन आप कभी कर्म फल की इच्छा से कर्म मत करो। कर्म फल की अपेक्षा से आप कभी कर्म मत करें, न ही आप की कभी कर्म न करने में प्रवृर्ति हो।।"

क्या करें:
आम तौर पर देखा गया है की हम दुःख के समय निराश और हताश हो जाते है। लेकिन हमें चाहिए की कुछ ऐसा काम करे की मन को शांति मिले और अंदुरुनी सुख प्राप्त हो। मैं जब दुखी होता हूँ तब किसी की सेवा करने लग जाता हूँ मन को बहुत शांति मिलती है या किसी मंदिर मैं जा कर वहाँ कुछ मदद जैसे वहाँ की साफ़ सफाई या कही किसी वृद्ध की सेवा, कभी-२ तो किसी पार्क में जा कर वहाँ की साफ़-सफाई कुछ मित्रो के साथ जा कर , कभी तो घर से कहना ले कर चला जाता हूँ जो भूख दिखा उसको खिला दिया या कुछ भी जो आपके के ह्रदय में एक सेवा भाव पैदा करे, जिससे आप के मन को शांति भी मिलती है और दुःख भी काम हो जाता है । एक दूसरे की सहायता करने से अकेलापन दूर हो जाता है और इसे तन मन का स्वास्थ्य कहते है। वैज्ञानिक भी इसे सिद्ध कर चुके है की दूसरों की सहायता करने से स्वस्थ्य सुधरता है, रोग प्रतिरोधक सकती बढ़ती है, ह्रदय सुदृढ़ बनता है। आप एक बार जरूर आजमा कर देखे और मन में हमेशा सकारात्मक ख्याल रखे और अपने कर्म को पूरे लगन और धैर्य के साथ करना चाहिए।
हरी ॐ

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