Sunday 7 October 2018

प्राणायाम के प्रकार - भाग -२

'शरीर और मन के बीच की कड़ी है प्राणायाम' 


प्राण, अपान, समान आदि वायुओं से मन को रोकने और शरीर को साधने का अभ्यास करना अर्थात प्राणों को आयाम देना ही प्राणायाम है। 



'प्राणस्य आयाम: इत प्राणायाम'। ''श्वासप्रश्वासयो गतिविच्छेद: प्राणायाम''-(यो.सू. 2/49) 



अर्थात प्राण की स्वाभाविक गति श्वास-प्रश्वास को रोकना प्राणायाम है। वेद और योग में आठ प्रकार की वायु का वर्णन मिलता है, जिनमें जीव विचरण करता है। योगी के लिए सभी साध्य हैं।

आयु : प्राणायाम का अर्थ होता है प्राणवायु या शक्ति का विस्तार। सबमें निहित है प्राणशक्ति। शरीर और मन के बीच की कड़ी है प्राण। प्राणों से ही शरीर और मन को शक्ति मिलती है। प्राण को आयु भी कहते हैं अर्थात प्राणायाम से दीर्घायु हुआ जा सकता है।

श्वास-प्रश्वास : शरीर शक्ति प्राप्त करता है श्वसन क्रिया से। यदि आपकी श्वास में रुकावट है तो सभी अंगों पर इसका प्रभाव पड़ता है। श्वास का तेज चलना या अत्यंत धीमे चलने से रक्त प्रवाह और अन्य अंगों की कार्यप्रणाली में व्यवधान उत्पन्न होता है। यह श्वास कैसे पुष्ट हो, स्वस्थ हो और लय में चले, इसके लिए योग में प्राणायाम की विधियों का प्रावधान है। श्वास-प्रश्वास से शरीर की मुख्य नाडि़यों का संचालन होता है। वे प्रमुख नाडि़याँ तीन हैं। पहली इड़ा, दूसरी पिंगला और तीसरी सुसुम्ना।

इड़ा या चंद्र नाड़ी : यह शरीर के बाएँ भाग को नियंत्रण करती है। यह ठंडी है तथा मानव के विचारों और भावों को नियंत्रित करती है।



पिंगला या सूर्य नाड़ी : यह शरीर के दाएँ भाग का नियंत्रण करती है। यह गर्म है तथा व्यक्ति में प्राण-शक्ति का नियंत्रण करती है।

सुसुम्ना : यह मध्य नाड़ी है। मेरुदंड के मध्य में होकर मूलाधार तक जाती है। न गर्म न ठंडी, परंतु दोनों के संग लय में सहायक होती है। यह प्रकाश, ज्ञान और जागरण देती है।

इन तीनों नाडि़यों में ठीक-ठीक संतुलन हो तो इनमें आरोग्य, बल, शांति तथा लम्बी आयु प्रदान करने की क्षमता है। इनमें संतुलन प्राणायाम की विधियों से होता है। यह तीनों नाडि़याँ शरीर की समस्त रक्त नलियों, कोशिकाओं आदि का केंद्र हैं। इन नाडि़यों से ही इन्हें शक्ति मिलती है। प्राणायाम के नियमित अभ्यास से जहाँ मन की ग्रंथियों से मुक्ति मिलती है, वहीं जीवनशक्ति बढ़ती है।

प्राणायाम के प्रकार :-


1.  कपालभांति प्राणायाम :: 

सबसे पहले किसी साफ़ और खुली जगह पर पद्मासन या सुखासन में बैठ जाये। अब अपनी सासों को लगातार बाहर की ओर फेके, ध्यान रहे आपको सासें लेनी नहीं है सिर्फ बाहर की और धकेलनी है,जब थकान लगे तब रुक जाये, शुरुआत में 20 से 25 बार लगातार सासों को बाहर की ओर धकलने का प्रयत्न करे। इस तरह कुछ देर रूककर फिर 20 से 25 बार करे. शुरुआती दिनों में 1 मिनट तक करने की कोशिश करे और फिर धीरे धीरे समय बढाकर 2 मिनट, 3 मिनट, 5 मिनट तक करे। माना जाता है कपालभाती अकेला ऐसा योग है जो सब बिमारियों का इलाज़ है. अगर हमेशा स्वस्थ्य रहना चाहते है तो दिन का थोडा सा समय अपने शरीर के लिए निकालकर रोज सुबह यह प्राणायाम  जरुर करे। 
लाभ::
  1. इस प्राणायाम से चेहरे पर हमेशा ताजगी, प्रसन्नता और शांति दिखाई देगी। कब्ज और डाइबिटिज की बीमारी से परेशान लोगों के लिए यह काफी फायदेमंद है। दिमाग से संबंधित रोगों में लाभदायक है।
  2. वजन को सही करता है जो लोग ज्यादा वजन से परेशान है वे इस प्राणायाम से बहुत कम समय में ही फायदा प्राप्त कर सकते हैं। इससे वजन संतुलित रहता है।
  3. इसको लगातार करने से पेट सबंधित सभी बीमारियों को ये जड़ से समाप्त क्र देता है।
2. अनुलोम-विलोम (नाड़ी शोधन) प्राणायाम::
अनुलोम-विलोम करने के लिए पहले सुखासन या पद्मासन में बैठ जाएं और आंखें बंद कर लें।फिर अपना दाएं हाथ के अंगूठे से नाक के के दाएं छिद्र को बंद कर लें और बाएं छिद्र से भीतर की ओर सांस खीचें। अब बाएं छिद्र को अंगूठे के बगल वाली दो अंगुलियों से बंद करें। दाएं छिद्र से अंगूठा हटा दें और सांस छोड़ें। अब इसी प्रक्रिया को बाएं छिद्र के साथ दोहराएं। यही क्रिया कम से कम 10 बार, उलट-पलट कर करें। इसे प्रतिदिन 7-10 मिनट तक करने की आदत डालें।
लाभ::
  1. मानव शरीर में स्थित 72 हज़ार नाड़ियों को हर तरीके से शुद्ध करने में बहुत अहम भूमिका निभाता है जिससे शरीर की असंख्य बीमारियों का नाश अपने आप धीरे धीरे होने लगता है।
  2. हमारे शरीर से सभी प्रकार की बीमारियों को दूर करने में सहायक है ।

3. सूर्यभेदी प्राणायम::
किसी भी सुविधाजनक आसन में बैठ जाएं। बायीं नाक बंद करके दाई नाक से सास खींचे। जब सांस पूरी भर जाए, तब कुंभक करें। इस कुंभक को उतना ही देर तक करना चाहिए, जिससे किसी भी अंग पर दबाव न पड़े। फिर बायीं नाक से सांस धीरे धीरे निकाल दे।यही क्रिया कम से कम 10 बार करें।
लाभ::
  1. इस प्राणायाम से मस्तिष्क शुद्ध होता है। 
  2. वातदोष का नाश होता है। साथ ही कृमि दोष नष्ट होते हैं। 
  3. यह सूर्य भेदन कुंभक बार-बार करना चाहिए पर गर्मी में कम करना चाहिए । 
  4. इससे सभी उदर-विकार दूर होते हैं और जठराग्नि बढ़ती है|
4. चंद्रभेदी प्राणायाम::
किसी भी शांत एवं स्वच्छ वातावरण वाले स्थान पर सुखासन में बैठ जाएं। अब नाक के बाएं छिद्र से सांस अंदर खींचें। पूरक अथवा सांस धीरे-धीरे गहराई से लें। अब नाक के दोनों छिद्रों को बंद करें। अब सांस को रोक लें (कुंभक करें) फिर थोड़ी देर बाद नाक के दाएं छिद्र से सांस छोड़ दें। यही क्रिया कम से कम 10 बार करें।
लाभ::
  1. शरीर में शीतलता आती है और मन प्रसन्न रहता है। 
  2. पित्त रोग में फायदा होता है। 
  3. यह प्राणायाम मन को शांत करता है और क्रोध पर नियंत्रण लगाता है। 
  4. अत्यधिक कार्य होने पर भी मानसिक तनाव महसूस नहीं होता। दिमाग तेजी से कार्य करने लगता है।
  5. हाई ब्लड प्रेशर वालों को इस प्राणायाम से विशेष लाभ प्राप्त होता है।
5. भस्त्रिका प्राणायाम::
समतल और हवादार स्थान पर किसी भी आसन जैसे पदमासन या सुखापन में बैठकर इस क्रिया को किया जाता है। दोनों हाथ को दोनों घुटनों पर रखें। अब नाक के दोनों छिद्र से तेजी से गहरी सांस लें। फिर सांस को बिना रोकें, बाहर तेजी से छोड़ दें।
लाभ::
  1. इस क्रिया के अभ्यास से फेफड़े में स्वच्छ वायु भरने से फेफड़े स्वस्थ्य और रोग दूर होते हैं। 
  2. यह आमाशय तथा पाचक अंग को स्वस्थ्य रखता है। 
  3. इससे पाचन शक्ति और वायु में वृद्धि होती है तथा शरीर में शक्ति और स्फूर्ति आती है। 
  4. इस क्रिया से सांस संबंधी कई बीमारियां दूर ही रहती हैं।
6. बाह्य प्राणायाम::
सुखासन या पद्मासन में बैठें। साँस को पूरी तरह बाहर निकालने के बाद साँस बाहर ही रोककर रखने के बाद तीन बन्ध एक साथ लगाने पड़ते है ! ये तीनो बंध हैं - जालंधर बन्ध (गले को पूरा सिकोड कर ठोडी को छाती से सटा कर रखना है), उड़ड्यान बन्ध (पेट को पूरी तरह अन्दर पीठ की तरफ खीचना है), मूल बन्ध (मल विसर्जन करने की जगह को पूरी तरह ऊपर की तरफ खींचना है) !
लाभ::
  1. तात्कालिक रूप से कब्ज, ऐसिडिटी, गैस आदि जैसी पेट की सभी समस्याओं से आराम मिलता है। 
  2. हर्निया ठीक होता है। 
  3. धातु, पेशाब से संबंधित सभी समस्याएँ मिटती हैं। 
  4. मन की एकाग्रता बढ़ती है। 
7. सीत्कारी (शीतकारी) प्राणायाम::
सबसे पहले आप पद्मासन या किसी भी आरामदायक आसन में बैठें और आंखों को बंद करें।अब अपने हाथों को ज्ञानमुद्रा या अंजलिमुद्रा में घुटनों पर रखें, तालु में जीभ को कसकर सटाएं। दोनों जबड़ों को दातों से भींचकर रखें और होंठ खुले रखें, ‘सि’ की सिसकी ध्वनि के साथ मुंह से वायु अंदर खींचें। अपने हिसाब से सांस को अंदर रोके रखें, उसके बाद दोनों नासिकाओं से धीरे-धीरे श्वास छोड़े।
लाभ::
  1. इसके लम्बे अभ्यास से भूख प्यास पर विजय प्राप्त होती है ! 
  2. शरीर चमकदार और चिर युवा रहता है ! 
  3. पेट की गर्मी और जलन शांत होती है । 
  4. शरीर पर स्थित झुर्रियां, फोड़ा, फुन्सिया, मुहांसे आदि का नाश होता है ! 
  5. डायबिटीज जैसे जिद्दी रोगों में भी बहुत फायदेमंद है !
8. शीतली प्राणायाम::
सबसे पहले आप पद्मासन या किसी भी आरामदायक आसन में बैठें,आंखों को बंद करें। अब अपने हाथों को ज्ञानमुद्रा या अंजलिमुद्रा में घुटनों पर रखें। दोनों किनारों से जिह्वा को मोड़कर नली का आकार बना लें। नली के आकार की जिह्वा से श्वास अंदर खींचकर फेफड़ों को अपनी पूरी क्षमता के साथ भर लें और मुंह बंद कर लें। जालंधरबंध को रोककर रखें। जालंधरबंध के साथ जबतक श्वास को अंदर रोक सकते हैं, रोककर रखें। जालंधरबंध को छोड़ दें और धीरे-धीरे नासिका से श्वास छोड़ें।
लाभ::
  1. इस प्राणायाम के अभ्यास से बल एवं सौन्दर्य बढ़ता है। रक्त शुद्ध होता है। 
  2. भूख, प्यास, ज्वर (बुखार) और तपेदिक पर विजय प्राप्त होती है। 
  3. शीतली प्राणायाम ज़हर के विनाश को दूर करता है। अभ्यासी में अपनी त्वचा को बदलने की सामर्थ्य होती है।
  4. यह प्राणायाम अनिद्रा, उच्च रक्तचाप, हृदयरोग और अल्सर में रामबाण का काम करता है। 
  5. चिड़-चिड़ापन, बात-बात में क्रोध आना, तनाव तथा गर्म स्वभाव के व्यक्तियों के लिए विशेष लाभप्रद है।
  6. ज्यादा पसीना आने की शिकायत से आराम मिलता है। पेट की गर्मी और जलन को कम करने के लिये। 
9.उज्जायी प्राणायाम::
सुखासन या पद्मासन में बैठकर सिकुड़े हुये गले से आवाज करते हुए सांस को अन्दर खीचना होता है।
लाभ::
  1. थायराँइड की शिकायत से आराम मिलता है। 
  2. तुतलाना, हकलाना, ये शिकायत भी दूर होती है। 
  3. अनिद्रा, मानसिक तनाव भी कम करता है। टी•बी•(क्षय) को मिटाने मे मदद होती है। 
  4. गूंगे लोगों के लिए बहुत फायदेमंद है क्योंकि इसके लम्बे अभ्यास से आवाज वापस आने की संभावना रहती है ! 
  5. गले में स्थित रहस्यमय विशुद्ध चक्र का जागरण होता है !
10. भ्रामरी प्राणायाम::
सुखासन या पद्मासन में बैठें। दोनो अंगूठों से कान पूरी तरह बन्द करके, दो उंगलिओं को माथे पर रख कर, छः उंगलियों को दोनो आँखो पर रख दे। लंबी साँस भरने के बाद, सांस को धीरे धीरे कण्ठ से भवरें जैसा (ॐ या हम्म्म्म) की आवाज करते हुए निकालना है।
लाभ::
  1. सायकीक पेंशेट्स को फायदा मिलता है। वाणी तथा स्वर में मधुरता आती है। 
  2. ह्रदय रोग के लिए काफी फायदेमंद है। मन की चंचलता दूर होती है एवं मन एकाग्र होता है।
  3. पेट के विकारों का शमन करती है। उच्च रक्त चाप पर नियंत्रण करता है। 
  4. थायराइड की समस्या दूर करता है ! 
  5. कंठ स्थित विशुद्ध चक्र का जागरण होता है ! 
  6. इस प्राणायाम के अभ्यास से मन शांत होता है। और मानसिक तनाव (stress/depression) दूर हो जाता है।
  7. भ्रामरी प्राणायाम उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure) की बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को भी लाभदायी होता है। 
  8. इस प्राणायाम को करने से माइग्रेन/अर्धशीशी (Migraine) के रोगी को भी लाभ होता है।
  9. भ्रामरी प्राणायाम से मस्तिस्क की नसों को आराम मिलता है। और हर प्रकार के रक्त दोष मिटते हैं।