Friday 30 September 2016

द्वितीय दिवस नवदुर्गा : माँ व्रह्मचारणी

कठोर तप और ध्यान की देवी "ब्रह्मचारिणी" माँ दुर्गा का दूसरा रूप हैं। इनकी उपासना नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है।

देवी ब्रह्मचारिणी: ‘ब्रहाचारिणी’ माँ पार्वती के जीवन काल का वो समय था जब वे भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या कर रही थी। तपस्या के प्रथम चरण में उन्होंने केवल फलों का सेवन किया फिर बेल पत्र और अंत में निराहार रहकर कई वर्षो तक तप कर भगवान शिव को प्रसन्न किया। इनके दाहिने हाथ में जप की माला और बाएँ हाथ में कमण्डल है।


माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना के लिए यह मंत्र है-
दधांना कर पहाभ्यामक्षमाला कमण्डलम।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मiचारिण्यनुत्तमा।।


माँ ब्रह्मचारिणी ज्ञान का भंडार है. रुद्राक्ष उनका बहुत सुंदर गहना हैं. माँ ब्रह्मचारिणी सक्षम है अनंत लाभ पहुँचाने में माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना करने से मनुष्य को विजय प्राप्त होती हैं ।
द्वितीय  दिन हम सभी को हरे वस्त्र धारण करने चाहिये।

तृतीय दिवस नवदुर्गा : माँ चन्द्रघन्टा

हरी  ॐ 

प्रथम दिवस नवदुर्गा : माँ शैलपुत्री

नवरात्रों की शुरुआत माँ दुर्गा के प्रथम रूप "माँ शैलपुत्री" की उपासना के साथ होतीहै। शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मी माँ दुर्गा के इस रूप का नाम शैलपुत्री है।

मां शैलपुत्री का स्वरूप: पार्वती और हेमवती इन्हीं के नाम हैं। माँ का वाहन वृषभ है और इनके दाएँ हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल का फूल है।


ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥

अर्थात- देवी वृषभ पर विराजित हैं। शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा है। नवरात्रि के प्रथम दिन देवी उपासना के अंतर्गत शैलपुत्री का पूजन करना चाहिए।


नवरात्र के इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को 'मूलाधार' चक्र में स्थित करते हैं और यहीं से उनकी योग साधना प्रारंभ होता है. पौराणिक कथानुसार मां शैलपुत्री अपने पूर्व जन्म में प्रजापति दक्ष के घर कन्या रूप में उत्पन्न हुई थी. उस समय माता का नाम सती था और इनका विवाह भगवान् शंकर से हुआ था. एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ आरम्भ किया और सभी देवताओं को आमंत्रित किया परन्तु भगवान शिव को आमंत्रण नहीं दिया. अपने मां और बहनों से मिलने को आतुर मां सती बिना निमंत्रण के ही जब पिता के घर पहुंची तो उन्हें वहां अपने और भोलेनाथ के प्रति तिरस्कार से भरा भाव मिला. मां सती इस अपमान को सहन नहीं कर सकी और वहीं योगाग्नि द्वारा खुद को जलाकर भस्म कर दिया और अगले जन्म में शैलराज हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया. शैलराज हिमालय के घर जन्म लेने के कारण मां दुर्गा के इस प्रथम स्वरुप को शैल पुत्री कहा जाता है.

प्रथम दिन हम सभी को पीले वस्त्र धारण करने चाहिये।


हरी  ॐ 




कलश स्थापना एवं नवरात्रि की शुभकामनाएं।।

आप सभी को मेरी ओर से नवरात्र की हार्दिक शुभकामनायें। मां भगवती देवी दुर्गा आप सभी के परिवार में सुख, शांति, उन्नति और समृद्धि लाएं और सब प्रकार से रक्षा करें।
आपकी मनोकामनाएं पूरी हों, ऐसी मां भगवती से मेरी प्रार्थना है।
नवरात्रि का पर्व सनातन धर्म में साल में दो बार आता है। नवरात्रि का अर्थ होता है, नौ रातें। एक शरद माह की नवरात्रि और दूसरी बसंत माह की नवरात्रि।
इस पर्व के दौरान तीन प्रमुख देवियों- मां काली, मां लक्ष्मी और मां सरस्वती के नौ स्वरुपों श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कुष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री का पूजन विधि विधान से किया जाता है, जिन्हे नवदुर्गा कहते हैं।
यह है घट स्थापना का समय :-
शारदीय नवरात्रि का पहला दिन इस बार 01 अक्टूबर 2016 को पड़ रहा है। इस दिन कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 06:17 बजे से 07:29 बजे तक है।
-समयांतराल- 1 घंटा 11 मिनट।
-घट स्थापना मुहूर्त प्रतिपदा पर पड़ रहा है।
-घट स्थापनामुहूर्त स्वाभाव कन्या लग्न पर पड़ रहा है।
-प्रतिपदा तिथि एक अक्टूबर 2016 को 05:41 बजे शुरू होगी।
-प्रतिपदा तिथि दो अक्टूबर 2016 को 07:45 बजे समाप्त होगी।
यह है कलश स्थापना के लिए सामान :-
शारदीय नवरात्रि के लिए मिट्टी का पात्र और जौ, शुद्ध, साफ मिट्टी, शुद्ध जल से भरा हुआ सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी का कलश, मोली (कलवा), साबुत सुपारी, कलश में रखने के लिए सिक्के, फूल और माला, अशोक या आम के 5 पत्ते, कलश को ढकने के लिए मिट्टी का ढक्कन, साबुत चावल, एक पानी वाला नारियल, लाल कपड़ा या चुनरी की आवस्यकता होती है।
ऐसे करें कलश स्थापना
-नवरात्रि में कलश स्थापना करने के दौरान सबसे पहले पूजा स्थल को शुद्ध कर लें।
-लकड़ी की चौकी रखकर उसपर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं।
-कपड़े पर थोड़े-थोड़े चावल रखें।
-चावल रखते हुए सबसे पहले गणेश जी का स्मरण करें।
-एक मिट्टी के पात्र में जौ बोयें।
-इस पात्र पर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें।
-कलश पर रोली से स्वस्तिक या ऊँ बनायें।
-कलश के मुख पर कलवा बांधकर इसमें सुपारी, सिक्का डालकर आम या अशोक के पत्ते रखें।
-कलश के मुख को चावल से भरी कटोरी से ढक दें।
-एक नारियल पर चुनरी लपेटकर इसे कलवे से बांधें और चावल की कटोरी पर रख दें।
-सभी देवताओं का आवाहन करें और धूप दीप जलाकर कलश की पूजा करें।
-भोग लगाकर मां की आरती करें।

Tuesday 6 September 2016

चिकनगुनिया, डेंगू और मलेरिया से बचने के कुछ आसान उपाय ?

हमें इस बदलते मौसम में अपने शरीर की रोग प्रतिरोधक छमता को संतुलित रखने की बहुत जरुरत होती है, कुछ छोटी - छोटी बातों का ध्यान रख कर हम स्वस्थ रह सकते है।
१. हमें पानी ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करना चाहिए और कोशिश करें की कुछ गुनगुने पानी का प्रयोग करें,ज्यादा ठन्डे पानी का प्रयोग तो बिलकुल भी न करें ।
२. घर में अदरक, तुलसी की पत्ती और काली मिर्च का कड़ा बना के आधा - आधा  कप सुबह और शाम प्रयोग करें ये आप के शरीर की रोग प्रतिरोधक छमता को बढ़ाता है।
३. अगर संभव को तो गिलोय का जूस १५-२० मिली. सुबह शाम नियमित रूप से लेते रहें ।
४. फल जैसे खीरा, मोसमी, संतरा, सेव और हरी सब्जी ज्यादा मात्रा में लें।