Wednesday, 24 August 2016

प्रेम शब्द का अर्थ?

प्रेम शब्द दुनिया में सभी को प्रिय लगने वाला है, लेकिन इसका वास्तविक अर्थ क्या है, ये जानना बहुत जरुरी है। युगों-युगों से इसका महत्त्व रहा है। अपने शब्दो में इसका अर्थ बताने की कोशिश कर रहा हूँ :-
"विशेषअपने विशुद्ध और विस्तृत रूप में यह ईश्वरीय तत्त्व या ईश्वरता का व्यक्त रूप माना जाता है और सदा स्वार्थ रहित तथा दूसरों क सर्वतोमुखी कल्याण के भावों से ओतप्रोत होता है।"
अर्थात इसे ईश्वरीय रूप मन गया है जहाँ पर कोई स्वार्थ, लोभ  की भावना निहित नहीं होती है ।

कबीर दास जी ने भी कहा है :-
पोथी  पढ़  पढ़  जग  मुआ, पण्डित  भय  न  कोई।
ढाई  आखर  प्रेम  का , पढ़े  सो  पण्डित  होय॥
आप कितना भी किताबी ज्ञान का अनुसरण कर लो लेकिन अगर आप प्रेम की भावना को अपने जीवन में अनुसरण नहीं करते तो ये ज्ञान व्यर्थ है, अगर आप का व्यवहार अच्छा नहीं है तो सब ज्ञान व्यर्थ है।

कुछ उदाहरण  :-
कृष्णा- राधा का प्रेम सारा संसार जनता है, कृष्णा की हर साँस में राधा-रानी उपस्थित है।
हनुमान जी का श्री राम -सीता जी के लिए प्रेम, हनुमान जी ने अपना सीना चीर कर भी दिखा दिया था की उनके कण कण में राम सीता माँ निवास करते है।
मीरा - कृष्णा का प्रेम , मीरा को जब श्री कृष्ण का प्रसाद बोल कर विष का प्याला दिया था वो भी वो पी गयी और कुछ भी नहीं हुआ।
कृष्ण-सुदामा का प्रेम सर्व विदित है।
माँ का अपने बच्चो से प्यार बिना स्वार्थ के होता है, मैं तो एक लाइन में बोलना चाहता हूँ ,
“मां तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी?”

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि “संसार में हर रिश्ते में कोई न कोई स्वार्थ हो सकता है, पर एक मां का रिश्ता कभी स्वार्थपूर्ण नहीं होता।” रामायण के एक प्रसंग में भी लिखा मिलता है कि, “पुत्र भले ही कुपुत्र हो जाए, पर माता कभी कुमाता नहीं हो सकती।” हम गलतियां करते जाते हैं और वह माफ़ करती जाती है। सच में, सृष्टि की अनमोल रचना है मां।
हरी ॐ 

Sunday, 21 August 2016

ईश्वर प्रार्थना का महत्व ?

"प्रार्थना" इस शब्द के स्मरण मात्र से ही हम अपने अधीर ह्रदय को शांत अवस्था में ले आते है और हम यह कह सकते है की प्रार्थना का सीधा सम्बन्ध हमारे ह्रदय से है, प्रार्थना कभी किसी के दबाव में नहीं करते है ये तो "बस हो जाती है"। प्रार्थना भगवान् से भेट करने का एक आसान तरीका है, प्रार्थना हमें आत्म-मूल्यांकन और परम तत्त्व तक पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त करती है।

महात्मा गाँधी जी ने भी कहा है :-
"प्रार्थना नम्रता कि पुकार है; आत्मशुदी का, आत्म्निरिझणका आहान है |"

स्कूलों में भी ईश प्रार्थना के बाद ही पठन-पाठन का काम होता है । एक उदाहण:-
हे प्रभु आनंद-दाता ज्ञान हमको दीजिये।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए।।
लीजिये हमको शरण में, हम सदाचारी बनें।
ब्रह्मचारी धर्म-रक्षक वीर व्रत धारी बनें।।
हे प्रभु आनंद-दाता ज्ञान हमको दीजिये... ।।

१० हजार से भी अधिक वर्षो से इस पृथ्वी गृह पर प्रार्थनाएं की जाती रही हैं। भारत प्रार्थनाओं की भूमि रही हैं। प्रार्थनाओ का असर बहुत ही सकारात्मक रूप से पड़ता हैं। भारत के अलावा कई अन्य देश भी इसको मान रहे हैं।

कुछ तो बहुत ही रोचक पहलु भी सामने आये हैं,  ‎दिल्ली के वरिष्ठ कार्डियोलोजिस्ट और फिजिसियन डॉ आई पी एस कालरा कहते हैं की प्रार्थना अमृत संजीविनी हैं । अमेरिका में कई अस्पतालों में प्रार्थनाओ से मरीजो को बहुत ही चमत्कारिक लाभ प्राप्त हुए हैं। कुछ बच्चो को मरीजो के लिए प्रार्थना करने के लिए रखा गया हैं साथ ही कई सारे प्रयोग भी किये जा चुके है।
'न्यूयार्क टाईजस' के लेख में चिकित्सको की राय लेकर लिखा था की "....the medicine of the future is going to be prayer." अर्थात भविष्य में तो प्रार्थना ही सब से बड़ी दवा बन कर रह जाएगी ।
इससे ये तात्पर्य निकलता हैं की प्रार्थना अगर सच्चे मन से की जाये तो उसका सकारात्मक प्रभाव जरूर पड़ता हैं ।
"प्रार्थना हमेशा समर्थ से ही की जाती है।"
हरी ॐ 

Saturday, 20 August 2016

दुःख का कारण ? क्या करे दुःख के समय में ?

दुःख का कारण:
मैं ये अपना अनुभव बॉट रहा हूं, जो की मैंने अनुभव किया है। 

हमें दुःख तब होता है है जब हम किसी भी बात का आकलन उसके परिणाम आने से पहले ही कर लेते है और यदि उसके परिणाम हमारे अनुसार आये तब तो बहुत अच्छा लगता है अगर नहीं आये तो हमें दुःख होता है। फिर हम खुद का आकलन करने लगते है या कुछ समय के लिए बहुत परेशान होने लगते है, ये साधारण बात है हम मनुष्य जाति के अंदर। हमें चाहिए की हम आकलन करे लेकिन अपने आप को मजबूत भी रखे अगर परिणाम आशानुरूप नहीं आये तो हम फिर से उठ खड़े होंगे। ये तो दुःख की बात थी।
श्रीकृष्ण ने अर्जुन ही नहीं मनुष्य मात्र को यह उपदेश दिया है कि 'कर्म करो और फल की चिंता मत करो'। फल की इच्छा रखते हुए भी कोई काम मत करो। जब इच्छित फल की हमें प्राप्ति नहीं होती है तो हमें दुख होता है। अतः सुखी रहना है तो सिर्फ कर्म करो और वह भी निष्काम भाव से।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ २-४७

"श्री कृष्ण भगवान ने अर्जुन से कहा: आप को अपने निर्धारित कर्तव्य का पालन करने का अधिकार है, लेकिन आप कभी कर्म फल की इच्छा से कर्म मत करो। कर्म फल की अपेक्षा से आप कभी कर्म मत करें, न ही आप की कभी कर्म न करने में प्रवृर्ति हो।।"

क्या करें:
आम तौर पर देखा गया है की हम दुःख के समय निराश और हताश हो जाते है। लेकिन हमें चाहिए की कुछ ऐसा काम करे की मन को शांति मिले और अंदुरुनी सुख प्राप्त हो। मैं जब दुखी होता हूँ तब किसी की सेवा करने लग जाता हूँ मन को बहुत शांति मिलती है या किसी मंदिर मैं जा कर वहाँ कुछ मदद जैसे वहाँ की साफ़ सफाई या कही किसी वृद्ध की सेवा, कभी-२ तो किसी पार्क में जा कर वहाँ की साफ़-सफाई कुछ मित्रो के साथ जा कर , कभी तो घर से कहना ले कर चला जाता हूँ जो भूख दिखा उसको खिला दिया या कुछ भी जो आपके के ह्रदय में एक सेवा भाव पैदा करे, जिससे आप के मन को शांति भी मिलती है और दुःख भी काम हो जाता है । एक दूसरे की सहायता करने से अकेलापन दूर हो जाता है और इसे तन मन का स्वास्थ्य कहते है। वैज्ञानिक भी इसे सिद्ध कर चुके है की दूसरों की सहायता करने से स्वस्थ्य सुधरता है, रोग प्रतिरोधक सकती बढ़ती है, ह्रदय सुदृढ़ बनता है। आप एक बार जरूर आजमा कर देखे और मन में हमेशा सकारात्मक ख्याल रखे और अपने कर्म को पूरे लगन और धैर्य के साथ करना चाहिए।
हरी ॐ

Monday, 15 August 2016

योग का महत्त्व

योग कौन कर सकता है ??
ये सवाल हमेशा हमारे दिमाग में आता है क्या में योग कर सकता हूँ या कभी हम कुछ बीमार होते है तब भी ये ख्याल आता है। किस तरह के योग हमारे लिए लाभदायक होंगे और न जाने क्या क्या सवाल ।
एक लाइन में जबाब है " योग सभी के लिए "
आप अगर बीमार है तब भी योग कर सकते है लेकिन हमेशा किसी योगिक की सलाह से अगर आप को जानकारी नहीं है। कुछ योग आप की बीमारियों से राहत दिलाने के लिए ही होते है अगर आप को सही जानकारी होगी तो जल्द ही राहत भी मिलेगी ।।



कुछ ध्यान रखने योग्य बाते ::
१. सुविधाजनक समय निश्चित करे।
२. आरामदायी जगह निश्चित करे।
३. खाली पेट ही योग का अभ्यास करे।
४. आरामदायी कपड़ों में ही योग करे।
५. हर रोज योगाभ्यास करे।
६. शरीर से कोमलता से पेश आये।
७. हमेशा कुछ नए तरह के योगासन करे।
८. योगिक की सलाह का ध्यान रखे।
आप योगासन जितने आसानी से कर सकते है उतने ही करे। शरीर के किसी भी भाग पर ज्यादा दबाव डालने का प्रयास न करे। आपके निरंतर प्रयास से कुछ समय में आप सभी आसान आसानी से करने लगेंगे।।

योगाभ्यास करने के फायदे ::
१. तनाव से छुटकारा
२. लचीलापन 
३. मांसपेशियों को मजबूत रखना 
४. शारीरिक और मानसिक शक्ति का विकास 
५. मन को शांति प्रदान 
६. लक्ष्य निर्धारण 
७. सांस लेने की तकनीक में मदद 
८. नींद में सुधार में मदद 
९. मुद्रा में सुधार
हरी ॐ

पंचतत्व का अर्थ एवं महत्त्व

पञ्चभूत (पंचतत्व या पंचमहाभूत) भारतीय दर्शन में सभी पदार्थों के मूल माने गए हैं । पृथ्वी (ठोस), आप (जल, द्रव), आकाश (शून्य), अग्नि (प्लाज़्मा) और वायु (गैस) - ये पञ्चमहाभूत माने गए हैं जिनसे सृष्टि का प्रत्येक पदार्थ बना है । लेकिन इनसे बने पदार्थ जड़ (यानि निर्जीव) होते हैं, सजीव बनने के लिए इनको आत्मा चाहिए । आत्मा को वैदिक साहित्य में पुरुष कहा जाता है । सांख्य शास्त्र में प्रकृति इन्ही पंचभूतों से बनी माना गया है । योगशास्त्र में अन्नमय शरीर भी इन्हीं से बना है । लोकप्रिय तौर पर इन्हें क्षिति-जल-पावक-गगन-समीरा कहते हैं ।

पंचतत्वों को किसी को भगवान के रूप में तो किसी को अलइलअह अर्थात अल्लाह के रूप में याद रखने की शिक्षा दी। उनके द्वारा भगवान में आये इन अक्षरों का विश्लेषण इस प्रकार किया गया है- भगवान: भ-भूमि यानी पृथ्वी, ग- गगन यानि आकाश, व- वायु यानी हवा, अ- अग्नि अर्थात् आग और न- नीर यानी जल। इसी प्रकार अलइलअह (अल्लाह) अक्षरों का विश्लेषण इस प्रकार किया गया है: अ- आब यानी पानी, ल- लाब यानी भूमि, इ- इला- दिव्य पदार्थ अर्थात् वायु, अ- आसमान यानी गगन और ह- हरक- यानी अग्नि।
हरी ॐ

योग का आरम्भ

ऐसा माना जाता है कि जब से सभ्‍यता शुरू हुई है तभी से योग किया जा रहा है। योग के विज्ञान की उत्‍पत्ति हजारों साल पहले हुई थी, पहले धर्मों या आस्‍था के जन्‍म लेने से काफी पहले हुई थी। योग विद्या में शिव को पहले योगी या आदि योगी तथा पहले गुरू या आदि गुरू के रूप में माना जाता है।

योग भारत और नेपाल में एक आध्यात्मिक प्रकिया को कहते हैं जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने (योग) का काम होता है। यह शब्द, प्रक्रिया और धारणा बौद्ध धर्म,जैन धर्म और हिंदू धर्म में ध्यान प्रक्रिया से सम्बंधित है। योग शब्द भारत से बौद्ध धर्म के साथ चीन, जापान, तिब्बत, दक्षिण पूर्व एशिया और श्री लंका में भी फैल गया है और इस समय सारे सभ्य जगत्‌ में लोग इससे परिचित हैं।

इतनी प्रसिद्धि के बाद पहली बार ११ दिसंबर २०१४ को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रत्येक बर्ष २१ जून को विश्व योग दिवस के रूप में मान्यता दी है।
हरी ॐ

योग की परिभाषा



योग संस्कृत धातु 'युज' से उत्‍पन्न हुआ है जिसका अर्थ जुड़ना या एकजुट होना या शामिल होना है।



(१) पातंजल योग दर्शन के अनुसार - योगश्चित्तवृत्त निरोधः (1/2) अर्थात् चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है।
(२) सांख्य दर्शन के अनुसार - पुरुषप्रकृत्योर्वियोगेपि योगइत्यमिधीयते। अर्थात् पुरुष एवं प्रकृति के पार्थक्य को स्थापित कर पुरुष का स्व स्वरूप में अवस्थित होना ही योग है।
(३) विष्णुपुराण के अनुसार - योगः संयोग इत्युक्तः जीवात्म परमात्मने। अर्थात् जीवात्मा तथा परमात्मा का पूर्णतया मिलन ही योग है।
(४) भगवद्गीता के अनुसार - सिद्दध्यसिद्दध्यो समोभूत्वा समत्वंयोग उच्चते। (2/48) अर्थात् दुःख-सुख, लाभ-अलाभ, शत्रु-मित्र, शीत और उष्ण आदि द्वन्दों में सर्वत्र समभाव रखना योग है।
(५) भगवद्गीता के अनुसार - तस्माद्दयोगाययुज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्। अर्थात् कर्त्तव्य कर्म बन्धक न हो, इसलिए निष्काम भावना से अनुप्रेरित होकर कर्त्तव्य करने का कौशल योग है।
(६) आचार्य हरिभद्र के अनुसार - मोक्खेण जोयणाओ सव्वो वि धम्म ववहारो जोगो। मोक्ष से जोड़ने वाले सभी व्यवहार योग है।
(७) बौद्ध धर्म के अनुसार - कुशल चितैकग्गता योगः। अर्थात् कुशल चित्त की एकाग्रता योग है।
हरी ॐ

परिवार का महत्त्व

परिवार इस शब्द का अपने आप में बहुत महत्त्व है, आज कल ये अलग थलग पड़ता नजर आ रहा है। एक समय परिवार का मतलब होता था संयुक्त परिवार परंतु धीरे-२ एकल परिवार हो गया है, संयुक्त परिवार का मतलब होता सभी का एक साथ होना (दादा, दादी, ताऊ, ताई, चाचा, चाची, भाई, बहन, सभी रिश्ते - नाते ) और सबसे अच्छी बात थी की संस्कार और बड़ो का आर्शीवाद और किसी भी समस्या का हल पल में निकल आता था, किन्तु आज कल सब एकल परिवार होते जा रहे है जिसके परिणाम स्वरुप कुछ न कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
संयुक्त परिवार समाप्त होना का असर सीधे हमारी नई पीढ़ी और समाज पर पड़ रहा है, जैसे की बिखरते रिश्ते, बिछुड़ता बचपन, नशाखोरी और न जाने क्या -2, कभी-2 देखा गया है की परिवार माता-पिता के पास समय की कमी के चलते बच्चे गलत रास्ते पर निकल जाते है। समय की रफ़्तार के साथ भागने की वजह से एकल परिवार के बच्चो को अपनी समस्या चर्चा करने का वक्त नहीं मिल पाता है जिसकी वजह से वह अवसाद से ग्रषित हो जाते है, और कई बार देखा गया है बच्चे बचपन से या तो आया या फिर डे-केयर में अपना वक्त गुजरते है, जिससे उनका बचपन जैसा की परिवार के साथ होना चाइये वैसा नहीं हो पता है ।
आजकल देखा गया है की वृद्धाश्रम की बढ़ती मांग कही न कही ये भी इसी का एक कारक है क्यूंकि बच्चो ने जो देखा ही नहीं तो उनको उसका महत्व कैसे समझ आएगा।
हरी ॐ

मानव जीवन का अस्तित्व

मनुष्य/मानव/इंसान :
इस ब्रमांड की एक बहुत ही सूच्छम कड़ी है, बहुत ही सुन्दर कड़ी और एक मात्र कड़ी जिसके पास बुद्धि, विवेक और कुछ भी कर सकने का अदम्य साहसः है।

मानव जीवन का अस्तित्व :
हमें जरुरत है तो खुद को पहचानने की, खुद की अंतरात्मा की आवाज सुनने की और अपने जीवन को सफल बनाने की। रोग, द्वेष, दुर्भावना, लड़ाई, बुराई इन सभी से दूर रहने की आवश्यकता है । जब भी हम कुछ गलत या सही काम करने की कोशिश करते है तो हमारा अंतर्मन तुरंत समझ लेता है और गलत काम करने से एक बार तो जरूर रोकता है, जिसकी आवाज हमेशा सही होती है । हमें चाहिए की अपने आपको को स्वस्थ,शक्तिशाली और शक्तिमान बनाये और दुसरो के लिए भी भला ही सोचें।
हरी ॐ