Monday 3 October 2016

चतुर्थ दिवस नवदुर्गा : माँ कूष्मांडा

भगवती माँ दुर्गा जी के चौथे स्वरुप का नाम कूष्मांडा है ! अपनी मंद हल्की हसीं द्वारा अंड अर्थात ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कुष्मांडा देवी के नाम से अभिहित किया गया है ! जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था , चारों ओर अन्धकार ही अंधकार व्याप्त था, तब माँ कुष्मांडा ने ही अपनी हास्य से ब्रह्माण्ड कि रचना की थी ! अतः यही सृष्टि की आदि - स्वरूपा आदि शक्ति है ! इनके पूर्व ब्रह्माण्ड का अस्तित्व था ही नहीं ! इनका निवास सूर्य मंडल के भीतर के लोक में है ! सूर्य लोक में निवास सूर्य मंडल के भीतर के लोक में है ! सूर्य लोक में निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्ही में है ! इनके शरीर की कान्ति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दीप्तिमान और भास्कर है ! इनके तेज की तुलना इन्ही से की जा सकती है ! अन्य कोई भी देवी - देवता इनके तेज और प्रभाव की समता नहीं कर सकते ! इन्ही के तेज और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रही है ! ब्रह्माण्ड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्ही की छाया है ! इनकी आठ भुजाएं है ! अतः ये अष्टभुजी देवी के नाम से भी विख्यात है ! इनके सात हाथो में क्रमशः कमण्डलु , धनुष - बाण , कमल पुष्प , अमृत पूर्ण कलश , चक्र , तथा गदा है ! आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है ! इनका वाहन सिंह है ! इस कारण से भी कुष्मांडा कही जाती है !


नवरात्री - पूजन के चौथे दिन कुष्मांडा देवी के स्वरुप की ही पूजा उपासना की जाती है ! इस दिन साधक का मन अनाहत चक्र में अवस्थित होता है ! अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और अचल मन से कुष्मांडा देवी के स्वरुप को ध्यान में रख कर पूजा उपासना के कार्य में लगना चाहिए ! माँ कुष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग - शोक विनष्ट हो जाते है ! इनकी भक्ति से आयु , यश , बल , और आरोग्य की वृद्धि होती है ! माँ कुष्मांडा अत्यल्प सेवा और भक्ति से भी प्रसन्न होने वाली है ! यदि मनुष्य सच्चे ह्रदय से इनका शरणागत बन जाये तो फिर उसे अत्यंत सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती है ! हमे चाहिए की हम वेद पुराणों में वर्णित विधि - विधान पूर्वक माँ दुर्गा की पूजा - उपासना और भक्ति के मार्ग पर अग्रसर हो ! माँ के भक्ति मार्ग पर कुछ ही कदम आगे बढ़ने पर भक्त साधक को उनकी कृपा का सुक्ष्म अनुभव होने लगता है ! यह दुःख स्वरुप संसार उसके लिए अत्यंत सुखद और सुगम बन जाता है ! माँ की उपासना मनुष्य को सहज भाव से भवसागर से पार उतारने के लिए सर्वाधिक सुगम व् श्रेयस्कर मार्ग है ! माता की उपासना मनुष्य को आँधियों - व्याधियों से सर्वथा विमुक्त करके उसे सुख - समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाने वाली है !

देवी कूष्मांडा की उपासना इस मंत्र के उच्चारण से की जाती है-
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥

पंचम दिवस नवदुर्गा : माँ स्कंदमाता


हरी ॐ

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