भगवती
माँ दुर्गा जी के चौथे
स्वरुप का नाम कूष्मांडा
है ! अपनी मंद हल्की हसीं द्वारा अंड अर्थात ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने
के कारण इन्हें कुष्मांडा देवी के नाम से
अभिहित किया गया है ! जब सृष्टि का
अस्तित्व नहीं था , चारों ओर अन्धकार ही
अंधकार व्याप्त था, तब माँ कुष्मांडा
ने ही अपनी हास्य
से ब्रह्माण्ड कि रचना की
थी ! अतः यही सृष्टि की आदि - स्वरूपा
आदि शक्ति है ! इनके पूर्व ब्रह्माण्ड का अस्तित्व था
ही नहीं ! इनका निवास सूर्य मंडल के भीतर के
लोक में है ! सूर्य लोक में निवास सूर्य मंडल के भीतर के
लोक में है ! सूर्य लोक में निवास कर सकने की
क्षमता और शक्ति केवल
इन्ही में है ! इनके शरीर की कान्ति और
प्रभा भी सूर्य के
समान ही दीप्तिमान और
भास्कर है ! इनके तेज की तुलना इन्ही
से की जा सकती
है ! अन्य कोई भी देवी - देवता
इनके तेज और प्रभाव की
समता नहीं कर सकते ! इन्ही
के तेज और प्रकाश से
दसों दिशाएं प्रकाशित हो रही है
! ब्रह्माण्ड की सभी वस्तुओं
और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्ही की छाया है
! इनकी आठ भुजाएं है
! अतः ये अष्टभुजी देवी
के नाम से भी विख्यात
है ! इनके सात हाथो में क्रमशः कमण्डलु , धनुष - बाण , कमल पुष्प , अमृत पूर्ण कलश , चक्र , तथा गदा है ! आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को
देने वाली जपमाला है ! इनका वाहन सिंह है ! इस कारण से
भी कुष्मांडा कही जाती है !
नवरात्री
- पूजन के चौथे दिन
कुष्मांडा देवी के स्वरुप की
ही पूजा उपासना की जाती है
! इस दिन साधक का मन अनाहत
चक्र में अवस्थित होता है ! अतः इस दिन उसे
अत्यंत पवित्र और अचल मन
से कुष्मांडा देवी के स्वरुप को
ध्यान में रख कर पूजा
उपासना के कार्य में
लगना चाहिए ! माँ कुष्मांडा की उपासना से
भक्तों के समस्त रोग
- शोक विनष्ट हो जाते है
! इनकी भक्ति से आयु , यश
, बल , और आरोग्य की
वृद्धि होती है ! माँ कुष्मांडा अत्यल्प सेवा और भक्ति से
भी प्रसन्न होने वाली है ! यदि मनुष्य सच्चे ह्रदय से इनका शरणागत
बन जाये तो फिर उसे
अत्यंत सुगमता से परम पद
की प्राप्ति हो सकती है
! हमे चाहिए की हम वेद
पुराणों में वर्णित विधि - विधान पूर्वक माँ दुर्गा की पूजा - उपासना
और भक्ति के मार्ग पर
अग्रसर हो ! माँ के भक्ति मार्ग
पर कुछ ही कदम आगे
बढ़ने पर भक्त साधक
को उनकी कृपा का सुक्ष्म अनुभव
होने लगता है ! यह दुःख स्वरुप
संसार उसके लिए अत्यंत सुखद और सुगम बन
जाता है ! माँ की उपासना मनुष्य
को सहज भाव से भवसागर से
पार उतारने के लिए सर्वाधिक
सुगम व् श्रेयस्कर मार्ग
है ! माता की उपासना मनुष्य
को आँधियों - व्याधियों से सर्वथा विमुक्त
करके उसे सुख - समृद्धि और उन्नति की
ओर ले जाने वाली
है !
देवी
कूष्मांडा की उपासना इस
मंत्र के उच्चारण से
की जाती है-
सुरासम्पूर्णकलशं
रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना
हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥पंचम दिवस नवदुर्गा : माँ स्कंदमाता
हरी ॐ
जय माता दी
ReplyDelete